एक अजीब दरिया है वो
विशाल-सा।
है निर्जन नहीं, फिर भी है एंकात-सा।
नदियां मिलती तो कई हैं उसमें
पर वो बदलता नहीं।
सितारे कितनी भी उसमें अपनी परछाई छोड़ जाए
पर वो चमकता नहीं ।
समेटे रहता है ना जाने कितना कुछ अपने अंदर
पर उफनता नहीं , हमेशा हीं रहता है शांत- सा।