
रात के ख्याबों का फ़साना अगर दिन में गुम हो जाए..
तो वो कोई ख्याब नहीं ।
दिल में चुप बैठी कोई बात है ।
जो रह-रह कर जग जाती है ।
कभी-कभार याद आती है ।
और अधुरे रंग लिए वक्त- बेवक्त चुभ जाती है ।
रात के ख्याबों का फ़साना अगर दिन में गुम हो जाए..
तो वो कोई ख्याब नहीं ।
दिल में चुप बैठी कोई बात है ।
जो रह-रह कर जग जाती है ।
कभी-कभार याद आती है ।
और अधुरे रंग लिए वक्त- बेवक्त चुभ जाती है ।