
कितनी मुश्किल से कह पाते हैं हम अपनी बात।
जब वो भी ना कबूल होता है।
दिल करता नहीं कुछ कहने को।
चुप रहना हीं मंजूर होता है।
पर यहाँ भी खत्म होती नहीं कहानी।
इस पर भी उठ जाते हैं सवाल।
कभी नासमझ, कभी बेबस, कभी बेचारी ..
जैसे मिल जाते हैं उपनाम।
कहना भी है गुस्ताखी..
हमारा चुप रहना भी फिजूल होता है।