
सोए रहते हैं बेहोश वर्षों तक।
जग जाते हैं इत्तफाकन तो बबाल करते हैं ।
जताते हैं समझदारी अपनी ।
सही गलत क्या है , सवाल करते हैं ।।
इज्जत मिली या जिल्लत, असर नहीं ।
वक्त बचा है कितना, खबर नहीं ,
बरहाल कीमती पल अपना बेकार करते हैं ।।
उलझे रहते हैं सबके तंज- तानो में ।
जो खुद बे-वजूद है उनके संवादों में ।
ख़ामख़ाह गैर-जरूरी बातों का हम ख्याल करते हैं ।