
औरत …
ह्दय तुम्हारा ..संमदर है ।
मन.. जैसे कोई धर्मकथा ।।
सबने हीं तुमसे कुछ पाया है
तुने भी सबका ध्यान धरा।।
तू कल्पतरू की छाँव है वो,
जिससे है संसार हरा।।
स्त्री है तू , तुझमें है सौम्यता ।
पर सोच में है पुरुषार्थ भरा।।
मायावी सा जग है सारा ।
जहाँ तू..निश्छलता की सूरत है ।
सिर्फ ममता नहीं …लौहकन्या भी है तू ।
हर रिश्ते में ढल जाए , पर मजबूती की मूरत है।।
दिल से जिसकी तू हो जाए ,मृत्युशय्या तक साथ निभाए।
साथ तुम्हारा सिर्फ साथ नहीं …
सबकी जरूरत बन जाए ।।
विश्वास मिले जो थोड़ा तुझे , तू जुगनु सी हो जाये ।
अपनी चमक से रोशन करे सबको ,
खुद भी उड़ती – खिलती जाए।।