
रूह जिंदा रखना
थोड़ी ख़्वाहिशों में भी दम भरना
गिर जाओ चाहे सौ बार
तुम एक बार फिर, आगे कदम धरना
संघर्ष लंबा हो कितना भी
उम्मीदें कम ना करना
किसी और के लिए नहीं,
तुम खुद के लिए खुद की कमियों से लड़ना
रूह जिंदा रखना
थोड़ी ख़्वाहिशों में दम भरना
©Dr.Kavita
रूह की जगह ,अगर हम “अपने को” लिख दे तो और भी अच्छी कविता हो जाएगी
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जी हाँ, सुझाव के लिए शुक्रिया ।😊
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या फिर हम रूह की जगह “उम्मीदों” को भी लिखे तो एक नई कविता बन जाएगी
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आप सही हैं , ‘उम्मीद’ शब्द का प्रयोग भी उचित होता ।
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