
लाशें जलती हैं बेतहाशा।
सांसे थमती हैं, घुटती हैं।
और हर पल खोती है आशा।
उम्मीद किसने चाहा नहीं?
दुआ किसने मांगी नहीं?
वक्त मुकर्रर होता है माना।
पर कबूल नहीं, यूँ अधुरा सब छोड़ जाना।
जो जग सकते थे उनका बेवक्त सो जाना।
दूर बिलखते अपने और उनका बंद थैलीयों में खो जाना।
मजबूरी है कैसी, की छू नहीं सकते,
आखिरी वक्त भी गलेे लग रो नहीं सकते।
वो बच सकते थे,
वो बच सकते थे,
गर सुदृढ़ सुविधा होती।
बिमारी होती भी, पर लाचारी की दुविधा ना होती।
जब गुजरेगा ये सब,
तो बचे लोग संभालेंगे अपनी अंतर्दशा।
क्योंकि जो हो रहा है, मुश्किल हीं से जायेगी इसकी व्यथा।
©Dr.Kavita
Reblogged this on Love & Love Alone.
LikeLiked by 1 person
Thank you dear💕
LikeLiked by 1 person
Mmmm. Powerful, my friend. “…take care of their inner condition.” Indeed. Love this one. ❤️
LikeLiked by 1 person
Sure, thanks for your constant support 💕🤗
LikeLiked by 2 people
You’re most welcome. Always. ❤🤗
LikeLike