महामारी और लाचारी

लाशें जलती हैं बेतहाशा।
सांसे थमती हैं, घुटती हैं।
और हर पल खोती है आशा।
उम्मीद किसने चाहा नहीं?
दुआ किसने मांगी नहीं?
वक्त मुकर्रर होता है माना।
पर कबूल नहीं, यूँ अधुरा सब छोड़ जाना।
जो जग सकते थे उनका बेवक्त सो जाना।
दूर बिलखते अपने और उनका बंद थैलीयों में खो जाना।
मजबूरी है कैसी, की छू नहीं सकते,
आखिरी वक्त भी गलेे लग रो नहीं सकते।
वो बच सकते थे,
वो बच सकते थे,
गर सुदृढ़ सुविधा होती।
बिमारी होती भी, पर लाचारी की दुविधा ना होती।
जब गुजरेगा ये सब,
तो बचे लोग संभालेंगे अपनी अंतर्दशा।
क्योंकि जो हो रहा है, मुश्किल हीं से जायेगी इसकी व्यथा।
©Dr.Kavita

Advertisement

5 thoughts on “महामारी और लाचारी

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s