हम सच में इतने अलग हैं।

कहने के लिए तुम-तुम हो
और मैं-मैं
पर क्या…
हम सच में इतने अलग हैं?
क्या हमारा दिल एक हीं बात पर नहीं रोता,
या खुश होता है?
क्या तुम्हें कुछ अच्छा सुन अच्छा नहीं लगता,
जैसे मुझे लगता है?
या बुरा सुन
क्या तुम्हें दुख नहीं होता?
क्या ख्याब तुम्हारा पीछा वैसे हीं नहीं करते,
जैसे मेरा करते हैं?
क्या तितलियाँ, हवाएं, पहाड़ तुम्हें नहीं लुभाती,
जैसे मुझे लुभाती हैं ?
क्या तुम्हारी तृपता
मेरी संतुष्टि के अनुभव से अलग हो जाती हैं?
और बेचैनी भरी रातें क्या
तुम्हें नहीं सताती हैं?
क्या बच्चों की मुस्कान
तुम्हें आनंदित नहीं करती जैसे मुझे करतीं हैं?
जब हमारी खुशियाँ, दर्द, प्यास,
हर जज़्बात और अहसास
सब एक से हैं,
तो हम अलग कैसे?
तुम-तुम कैसे?
और मैं-मैं कैसे?
ये नफ़रत कैसे?
ये अंतर-भेद कैसे?
©Dr.Kavita

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14 thoughts on “हम सच में इतने अलग हैं।

  1. आपके शब्द मुझे गहराई से छूते हैं
    यह है
    कहना
    वो आत्मा
    अगर तुम … मुझे
    अपने भाषण के साथ
    अंतरतम स्व में
    मुझे दिन के लिए जगा देता है

    Liked by 1 person

    1. पसंद करने के लिए ह्रदय से आभार। आशा करती हूँ की आप अपने विचार आगे भी हम सब के साथ साझा करेंगे❤

      Liked by 1 person

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