याद-ए-कमी।

मेरे रहते,
ख़्वाबों में तुम्हारे आया करती थी जो लड़की,
अब वो तुम्हारी हमनशीं तो नहीं?
जला करता था जो दिया, आंगन में तुम्हारे।
बुझा मिलता है अब वो अक्सर।
कहीं कोई नमीं तो नहीं?
गये थे तुम, हम नहीं।
गर दुखी हो फिर भी..
तो पूछेंगे,
कि अब भी किसी की याद-ए-कमी तो नहीं?
©Dr.Kavita

47 thoughts on “याद-ए-कमी।

  1. लड़की
    कि मेरे सपनों में
    मुझसे बोला
    के बीच
    मेरा मांस
    और हड्डियाँ
    शारीरिक रूप से ले जाया गया
    और मुझसे कहता है
    आपको मुझसे प्यार है
    तुमने मुझसे नहीं पूछा
    मैं वास्तव में कौन हूं

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  2. प्यार अक्सर रह जाता है अधूरा
    मालिक -ए- करम है उन पर जो पा जाए पूरा
    पर सच ये भी है कि जो आमोद ख्वाइशों ओर हसरतों को जीने में है ,
    बस वो न हो पूरा,
    बाकी क्या अधूरा और क्या पूरा

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  3. आपकी सुंदर लेखनी में कुछ अप्रत्यक्ष यशोधरा की सी वेदना है, “सखी वो मुझसे कहा कर जाते।”

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