क्यों ख्याब ख्याब है?
क्यों ये हकीकत नहीं बन जाती?
क्यों नहीं इच्छाएं पूरी हो जाती हैं सारी??
और क्यों डर दूर नहीं हो जाता ?
क्यों गहराता जाता है अंधेरा ?
और क्यों हिम्मत है बिखरा जाता ?
क्यों ख्याब ख्याब है?
क्यों ये हकीकत नहीं बन जाती?
क्यों नहीं इच्छाएं पूरी हो जाती हैं सारी??
और क्यों डर दूर नहीं हो जाता ?
क्यों गहराता जाता है अंधेरा ?
और क्यों हिम्मत है बिखरा जाता ?
अगर मैं वो करूं जो मुझे करना चाहिए।
तो शायद,
मैं वो ना रहूँ,
जो मुझे रहना चाहिए।
बुरा करने की सजाएँ बुराई नाप देती हैं ।
पर अच्छाई का कोई पैमाना तो नहीं ।
तुम्हारी नज़र में तुम भी अच्छे हो,
हमारी नज़र में हम भी ।
है क्या ये समाज??
हजारों पथ है बने हुए।
पर मंजिल की कोई ओर नहीं ।
कहते हैं मत भटको,
ना नये रास्ते पकड़ो।
जो है पहले से तय,
बस उस पर हीं जा अटको ।
निर्माण जब इसका तुमने किया ।
खुद के मतलब के लिए
झूठा नियम चुना,
क़ानून बुना।
फिर क्यों कहते हो ये अडिग है?
जो गये इनके आगे
तो तुम गलत हो,
ये हमेशा सटीक है।
समाज..
तो क्या है ये समाज??
जो होना है वो होता आया है।
सब ने अपनी सोच से,
अपना एक समाज बनाया है।
उसी में खुद को और अपनो को बसाया है,
पर दोष वो हमेशा समाज को देता आया है।
तो है क्या ये समाज??
जो खुली है सोच तुम्हारी,
तो प्रगती का साधन है ये समाज।
इसमें अच्छे विचार लाओगे,
अच्छे को आगे बढ़ाओगे।
ग़र संकरी है सोच,
तो किसी पिंजरे सा जकड़ा,
कैदखाने सा संकरा,
बस एक बंधन है समाज ।
जिसे ना चाहे अपनाओगे,
सही हो या ग़लत इसकी हर बात
बस माने जाओगे ।
नफ़रत दिल में बसा कर कहाँ तक जा पाओगे ?
घुम घुमा कर फिर वहीं आजाओगे।
ना बढ़ने देगा तुम्हें ये आगे ,
ना तुम अतीत को पीछे छोड़ पाओगे।
करोगे कोशिश भी ,तो संग इसके तो
कभी ना किसी को
भुल पाओगे ।
जो मिटा लोगे इसे दिल से,
हटा लोगे जिंदगी से
तो नई मंजिल, नये रास्ते ,नई रोशनी को पाओगे ।
और जो रखे रहे साथ इसे,
तो बस थमे रहे जाओगे ।
नफ़रत दिल में बसा कर कहाँ तक जा पाओगे ?
ना किसी का अहसान पसंद है ..
ना किसी का ज्ञान पसंद है ..
मैं अभिमानी हूँ।
मुझे मेरा अभिमान पसंद है।
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उसे उतना भी मुझसे प्यार नहीं
जितना वो बोला करता है।
भीड़ में
मैं जो
खो जाऊँ ,
तो उसको मैं अज़ीज़ नहीं,
ये राज़ वो खोला करता है।
रंग स्याह मेरी भी होगी उस पर,
यूहीं तो वो रंगीन नहीं।
श्रेय उसका भी होगा हीं कुछ,
यूँहीं तो मैं ग़मगीन नहीं।
मैंने उस पर अपना सब वार दिया।
और वो मुझे अपनो से तौला करता है।
कहती हूँ ना मैं,
उसे उतना भी मुझसे प्यार नहीं
जितना वो बोला करता है।
©Dr.Kavita
ऐ चिडियाँ तू उड़ जाना।
उड़ कर वापस ना आना।
ये पिंजरा तेरी जगह नहीं।
पंख मड़ोड़े बैठे रहना,
जो खिल सकता है
उसे जोड़े रहना,
क्या ये कोई सज़ा नहीं?
यहाँ तू जब भी अपने पंख फैलाएगी,
टकराकर वापस गिर जायेगी।
बाहर दुनिया बड़ी खुली है।
वहाँ तू नाच सकेगी,
झूमेगी, गायेगी।
यहाँ ऐसी कोई वज़ह नहीं।
ए चिडियाँ तू उड़ जाना।
उड़ कर वापस ना आना।
ये पिंजरा तेरी जगह नहीं।
माना मेरे शब्द तुम्हारे शब्दों जितने गहरे नहीं।
पर अहसास मेरे भी अनमोल हैं।
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हाँ, सही सुना है तुमने।
मैं लिए घुमा करती हूँ,
एक बदहवास सा दिल साथ।
©Dr.Kavita
तुम्हारे साथ रह कर मैं बर्बाद जाती हूँ।
पर तुम्हारे बिना भी तो मैं बर्बाद हो जाती हूँ।
तो बेहतर यही होगा
कि तुम मुझे अपने साथ रख लो।
रूठो ना मुझसे कभी,
और मेरी हर बात रख लो।
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मैं थी एक नाँव।
पर तुम ना मेरे साहिल थे,
ना पतवार।
जो मैं डूब भी रही होती
इस संसार स्वरूपी समंदर में,
तो तुम क्या कर लेते?
©Dr.Kavita
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तुम आओ,
तो हम चलें
दुनिया के उस कोने में,
जहाँ कभी कोई जाता नहीं।
©Dr.Kavita
हारना विकल्प नहीं।
जीतने के अलावा और कोई संकल्प नहीं ।
हवाएं आयी थी मुझे हिलाने।
मैं भी पत्थर थी,
स्थिर रही।
फिर उसने काम पर मौसमों को लगाया,
बारिशों को भी बुलवाया,
सबने बहुत ज़ोर लगाया।
नहीं हिली मैं,
पर मैंने खुद पर दरारों को पाया।
शायद आत्मविश्वास हिल चुका था।
फिर भी लगी रही मैं, डटी रही मैं ।
दिन बीते, महिनों- साल गुजर गये।
अब पत्थर पत्थर नहीं, मिट्टी का ढेर हो चुका था।
मुझे आभास हुआ ,
मैं टूट चुकी थी और
अकेले लड़ते-लड़ते बहुत देर हो चुका था।
है किसी उत्तर सी स्पष्ट जिंदगी तुम्हारी।
फिर क्यों सवालों में उलझा तुम्हारा संसार है?
कुछ नहीं है ये सब,
निकलो बाहर देखो दुनिया।
बाहर मुश्किलों का अंबार है।
मैं जलता रहा,
वो रोशनी में खिलती रही।
मैं बेतरतीब गलता रहा,
वो नये-नये साँचों में ढलती रही।
कोशिशें बहुत की उसे पाने की,
मैं पीछे पीछे चलता रहा,
पर वो आगे हीं आगे निकलती रही।
तू चलती रह, रुकती क्यों हैं।
जब हैं हौंसले बुलंद तो तू झुकती क्यों हैं।
ख्याब है जो आज,
वो हकीकत भी होगी कभी।
मालुम है जो तुझे तेरी मंजिल,
तो तू रास्ते में थकती क्यों है।
तू बस विश्वास रख।
आंखें नीचे भले रख,
मीच मत।
हार मत,
गलतफहमियां कोई सींच मत।
तू अभी सुनती रह,
बातें करने वालों को कुछ भी कहती क्यों है?
होगा ये जमाना इक दिन तुम्हारा भी,
संदेह कोई भी तू रखती क्यों है।
तू बस चलती रह, रुकती क्यों हैं।
जब हैं हौंसले बुलंद तो तू झुकती क्यों हैं।
©Dr.Kavita
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चाहता नहीं मेरा दिल जमाने से हार जाना,
है जज्बा इसमें बेइंतहा, जानता है ये खुद को हजारों दफ़ा आज़माना।
दुनिया का तो काम है गिराना,
मेरी तो चाहत है बस,
उठ कर संभलना और संभल कर दौड़ जाना।
गलती क्या थी मेरी कि जज़्बात कई थे मुझमें, अहसास कई थे?
तो लो,अब सीख लिया है उन पर भी काबू पा जाना।
©Dr.Kavita
रोज़ जीने मरने की चाहत तो न थी मुझे ,
फिर भी मोहब्बत की राह चल पड़ा।
न जानता था उसके घर का पता,
फिर भी उसकी गली की खोज में निकल पड़ा।
था अहसास की ना मुसाफिर होगा पूरे रास्ते ,
और ना हीं होगी कभी मंजिल से मुलाकात ,
फिर भी ना जाने क्यों उस राह मैं था चल पड़ा।
रोज़ जीने मरने की चाहत तो न थी,
फिर भी क्यों मैं मोहब्बत था कर चला?
जब खाली था ये दिल जज्बा़तों से तो,
आंसमा में उड़ाने भरा करता था।
होता गया ये भारी,
ज्यों-ज्यों भरते गये जज़्बात।
तभी तो आज ये तुम्हारे कदमों पर पड़ा है।
©Dr.Kavita
जिदंगी के चंद शब्दों में उलझ मत कविता,
अभी तो पूरी किताब बाकी है।
पन्ने पर पन्ने पलटने हैं हर दिन यहां ,
अभी तो कई हिसाब बाकी हैं ।
©Dr.Kavita
बिन जाने गुनाहें अपनी मैं सजाएँ काटे जाती हूँ,
खुद को लोगों से छांटे जाती हूँ ।
बह मुट्ठी से सबकी झर झर कर,
मैं हर रोज़ खत्म हो जाती हूँ।
दुनिया को खुश करने में मैं खुद को खोती जाती हूँ।
फिर हो कर खुद से ही पराया,
मैं उस रोज़ खत्म हो जाती हूँ।
अपनो से चोटें खाती हूँ,
उनसे हीं छुपाए जाती हूँ।
जब हो जाता हूँ जख्मी ज्यादा,
अकेले रोए जाती हूँ।
फिर उन नम आंखों के संग हीं सो,
मैं उस रोज़ खत्म हो जाती हूँ।
जितना पाती हूँ, उतना ही खोए जाती हूँ।
भीड़ में हो कर भी मैं तन्हा हीं रह जाती हूँ।
फिर उस तन्हाई में खो,
मैं उस रोज़ खत्म हो जाती हूँ।
मैं हर रोज़ खत्म हो जाती हूँ।
मैं हर रोज़ खत्म हो जाती हूँ।
©Dr.Kavita
विश्वास है वो शब्द जिसने मुझे
सबसे ज्यादा आघात किया।
जिस पर भी विश्वास किया।
उसने ही मुझसे कपट किया,
मुझे मात दिया।
अब हाल यूं है कि,
बस धोखे से हीं हम खुश हो लेते हैं।
लोग भ्रम जाल भले बुने।
अब हम उसी में सो लेते हैं।
©Dr.Kavita
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Good company in a journey makes the way seem shorter. — Izaak Walton