Dr.kavita
कभी कभी हमें अपनें अपराध ताउम्र समझ नहीं आते।
ऐसा नहीं की हमें उनकी सजाएँ नहीं मिलतीं,
तिरस्कार नहीं मिलता।
सब मिलता रहता है बराबर
बस,
इस समझ-नासमझ के बंधनों से निजात नहीं मिलता।
कभी कभी हमें अपनें अपराध ताउम्र समझ नहीं आते।
ऐसा नहीं की हमें उनकी सजाएँ नहीं मिलतीं,
तिरस्कार नहीं मिलता।
सब मिलता रहता है बराबर
बस,
इस समझ-नासमझ के बंधनों से निजात नहीं मिलता।
ख़्वाहिशें कहती हैं कुछ,
कुछ.. करतें हैं हम।
सोच तो नई लिए जगते हैं हम।
फिर ज़िम्मेवारियों का दिखता है भरा बस्ता।
फिर क्या?
जिधर ले चले जिंदगी,
उधर निकल पड़ते हैं हम।
©Dr.Kavita
भिंगते हुए बारिशों में मुझे ख्याल आया,
कि मैं गीली जरूर थी पर खुश थी।
©Dr.Kavita
मेरे एक-एक जज्बे की कायल है मेरी रूह।
कोशिश मेरी कैसी भी हो, छोटी या बड़ी,
मेरे कुछ करने भर से वो उछल पड़ती है खुशी से।
अच्छा लगता है उसे मेरा वो करना, जो मैं करना चाहती हूँ।
मुस्कुराती है वो जब मैं दूसरों के सोच की परवाह नहीं करती।
और सुकून पाती है,
जब जब मैं अपनी जिंदगी अपने शर्तों पर जीती हूँ।
वो चाहती है, मैं अनसुना कर दूँ दुनिया जहान की बातें।
वो चाहती है, मैं सुनूँ सिर्फ उसकी,
या उनकी जो मुझसे स्नेह रखते हैं।
ज्यादा कुछ तो नहीं चाहती वो।
बस वो सोने के पिंजरे में बंद,
आसमान को ताकती किसी पंछी की तरह घुटना नहीं चाहती।
रूह मेरी सिर्फ जिंदा रहना नहीं चाहती,
वो जीना चाहती है।
©Dr.Kavita
मजबूत रहना भी विकल्प है।
लड़ना भी एक संकल्प है।
वहां हार जाने से मिलता है क्या?
जहाँ खोने को सर्वस्व है।
©Dr.Kavita
लाशें जलती हैं बेतहाशा।
सांसे थमती हैं, घुटती हैं।
और हर पल खोती है आशा।
उम्मीद किसने चाहा नहीं?
दुआ किसने मांगी नहीं?
वक्त मुकर्रर होता है माना।
पर कबूल नहीं, यूँ अधुरा सब छोड़ जाना।
जो जग सकते थे उनका बेवक्त सो जाना।
दूर बिलखते अपने और उनका बंद थैलीयों में खो जाना।
मजबूरी है कैसी, की छू नहीं सकते,
आखिरी वक्त भी गलेे लग रो नहीं सकते।
वो बच सकते थे,
वो बच सकते थे,
गर सुदृढ़ सुविधा होती।
बिमारी होती भी, पर लाचारी की दुविधा ना होती।
जब गुजरेगा ये सब,
तो बचे लोग संभालेंगे अपनी अंतर्दशा।
क्योंकि जो हो रहा है, मुश्किल हीं से जायेगी इसकी व्यथा।
©Dr.Kavita
गलती हो गयी थी मुझसे,
कि मैं हारने लगी थी।
मंजिल छोड़, अड़चने ताकने लगी थी।
उम्मीद का दामन पकड़ना था मुझे,
पर मैं निराशा का हाथ थमाने लगी थी।
बात लोगों कि सुन, खुद को कम आंकने लगी थी।
गलती हो गयी थी मुझसे,
कि मैं हारने लगी थी।
©Dr.Kavita
रूह जिंदा रखना
थोड़ी ख़्वाहिशों में भी दम भरना
गिर जाओ चाहे सौ बार
तुम एक बार फिर, आगे कदम धरना
संघर्ष लंबा हो कितना भी
उम्मीदें कम ना करना
किसी और के लिए नहीं,
तुम खुद के लिए खुद की कमियों से लड़ना
रूह जिंदा रखना
थोड़ी ख़्वाहिशों में दम भरना
©Dr.Kavita
नहीं याद नहीं आती ।
हर बात में.. अब तुम्हारी बात भी नहीं लाती।
पर खुश हो ना तुम, मुझसे दूर हो कर…
ये पूछना था।
कैसे हो तुम ..
©Dr.Kavita
उम्मीदों में खोयी, आखों में खाब़ पिरोयी,
हालातों से.. वो लड़ती लड़की ।
कुछ को वो भांती..
कुछ को ..वो खटकती ।
वैसे चुप होती है,
कहीं गुम होती है ।
पर बात करो तो.. हर बात पर चिढ़ती ।
बेफ़िजूल दस्तूरों पर वो… भड़कती लड़की।
औरत की काया में तुम्हारी आत्मा घुट रही हो बेशक
पर happy women’s day..
तुम चीखना चाहती हो लेकिन कुछ कह भी नहीं पा रही
पर happy women’s day ..
तुम्हारी जिंदगी के फैसले लिए जाते हैं , पर तुम्हारी राय नहीं
फिर भी happy women’s day ..
तुम happy नहीं , तभी मुस्कुराती हर वक्त हो
इसलिए तुम्हें happy women’s day..
औरत …
ह्दय तुम्हारा ..संमदर है ।
मन.. जैसे कोई धर्मकथा ।।
सबने हीं तुमसे कुछ पाया है
तुने भी सबका ध्यान धरा।।
तू कल्पतरू की छाँव है वो,
जिससे है संसार हरा।।
स्त्री है तू , तुझमें है सौम्यता ।
पर सोच में है पुरुषार्थ भरा।।
मायावी सा जग है सारा ।
जहाँ तू..निश्छलता की सूरत है ।
सिर्फ ममता नहीं …लौहकन्या भी है तू ।
हर रिश्ते में ढल जाए , पर मजबूती की मूरत है।।
दिल से जिसकी तू हो जाए ,मृत्युशय्या तक साथ निभाए।
साथ तुम्हारा सिर्फ साथ नहीं …
सबकी जरूरत बन जाए ।।
विश्वास मिले जो थोड़ा तुझे , तू जुगनु सी हो जाये ।
अपनी चमक से रोशन करे सबको ,
खुद भी उड़ती – खिलती जाए।।
हर अलफ़ाज के अपने राज़ होते हैं ।
कुछ अनुभव, कुछ अहसास ,कुछ हकीकत
तो कुछ बस ख़्वाब होते हैं ।
अपना बनाना नहीं,
तो हमें आजमाते क्यों हो ??
हमसे दिल लगाना नहीं,
तो हमें देख मुस्काराते क्यों हो??
जब शक्ल कहती है हमारी …
की हम आ जायेंगे तुम्हारी बातों में ।
फिर मीठी बातें कर हमें पागल बनाते क्यों हो??
इंतजार है ..
इंतजार के खत्म हो जाने का ।
मिले हर घाव के भर जाने का।
मुड़ मुड़ कर देखने की..
मेरी फ़ितरत के मर जाने का ।
थक कर भी जगे रहने की आदत से
एक दिन थक जाने का ।
मिली हर नाशुक्री , बेकद्री को अपनी जहन से मिटाने का।।
यादों में आने वाली हर बुरी याद के गुम हो जाने का ।
खोए विश्वास को वापिस पाने का ।
फिर से नए ख्याब सजाने का।
झुठी हंसी भुला , दिल से मुस्काने का ।
किसी बाल मन जैसे बेफिक्र हो जाने का।
नाखुश से इस सफर में बेइंतिहा खुशियाँ पाने का।
इंतजार है कभी ना खत्म होने वाले
इस इंतजार के खत्म हो जाने का ।।
इंतजार है …..
सोए रहते हैं बेहोश वर्षों तक।
जग जाते हैं इत्तफाकन तो बबाल करते हैं ।
जताते हैं समझदारी अपनी ।
सही गलत क्या है , सवाल करते हैं ।।
इज्जत मिली या जिल्लत, असर नहीं ।
वक्त बचा है कितना, खबर नहीं ,
बरहाल कीमती पल अपना बेकार करते हैं ।।
उलझे रहते हैं सबके तंज- तानो में ।
जो खुद बे-वजूद है उनके संवादों में ।
ख़ामख़ाह गैर-जरूरी बातों का हम ख्याल करते हैं ।
हम खुद से खुद का कहें हाल ,
तो वो फर्जी सा लगता है ।
और तुम ख़ुद-बख़ुद समझ जाओ।
ये तुम्हारी मर्जी पर निर्भर ,
हमारी किसी बेतुकी अर्जी सा लगता है ।
कितनी मुश्किल से कह पाते हैं हम अपनी बात।
जब वो भी ना कबूल होता है।
दिल करता नहीं कुछ कहने को।
चुप रहना हीं मंजूर होता है।
पर यहाँ भी खत्म होती नहीं कहानी।
इस पर भी उठ जाते हैं सवाल।
कभी नासमझ, कभी बेबस, कभी बेचारी ..
जैसे मिल जाते हैं उपनाम।
कहना भी है गुस्ताखी..
हमारा चुप रहना भी फिजूल होता है।
कभी-कभी लगता है सबसे ज्यादा दर्द अपने हिस्से आयी है।
फिर देख लेती हूँ अपनी माँ का चेहरा।
तो हो जाता है अहसास कि बिन मांगे बेइंतिहा खुशियाँ भी हमने पायीं है।
रात के ख्याबों का फ़साना अगर दिन में गुम हो जाए..
तो वो कोई ख्याब नहीं ।
दिल में चुप बैठी कोई बात है ।
जो रह-रह कर जग जाती है ।
कभी-कभार याद आती है ।
और अधुरे रंग लिए वक्त- बेवक्त चुभ जाती है ।
तुम्हें मेरे दर्द की मऱहम जो मिल जाए,
तो मुझसे छुपाना।
अब बनने लगी है इस दर्द से मेरी ,
आ गया है इसका साथ निभाना।
इसने अकेलेपन में भी मुझे अकेला ना छोड़ा।
अब ग़लत होगा मेरा इसे छोड़ जाना।
©Dr.Kavita