मैं तुम्हें नहीं जानती।
और शायद कभी जान भी न सकूंगी।
क्योंकि तुम्हारे चेहरे की मुस्कान,
तुम्हारे अंदर की वेदना कभी बाहर आने नहीं देगी।
मैं तुम्हें इसलिए भी नहीं जान पाऊँगी क्योंकी
तुम किसी और राह के मुसाफिर हो
और तुम्हारा अपनी राह छोड़,
मेरा हमराही हो जाना कभी मुमकिन ना होगा।
एक वजह और है मेरा तुम्हें ना जानने की
कि हम बहुत मिलते-जुलते से तो हैं,
पर हम कभी मिले नहीं।
तो हां,
मैं कह सकती हूँ कि
मैं तुम्हें नहीं जानती।
©Dr.Kavita
Amazing work!🙌🏻
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Thank you so much 🥰🥰❤❤
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अमूल्य, अप्रितम, 🌹🌹❤️अतुल्नीय रचना
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आपका तहे दिल से आभार 🙏🙏🙏🥰🥰🤗🤗
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Very nice🙂
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Thank you so much 🤗🤗
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Very beautiful verses👌👌👏
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Thank you so much Kaushal uncle🤗🤗
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एक ख़ूबसूरत कविता 👌🌷मन की सच बहुत सरलता से लिखी है कि कुछ भी दूसरे पक्ष से
न सुनना चाहती है क्योंकि जानने से कुछ नहीं कर पाता , ठीक है 👍🏻🙏🌷 बधाइयाँ ♥️💐
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Thank you so much ma’am 🤗🤗❤❤
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So welcome 🙏🌷♥️
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बहुत ही खूबसूरत कविता लिखी है आपने 🌹🌹🌹
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Thank you so much 🤗🤗
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Very paradoxical, just like life. Crafted beautifully. 💙
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Thank you dear 💕
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You’re most welcome. Always. ❤️
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❤
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✍️👌
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💕🤗
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बेहतरीन सोच। उम्दा रचना।
रोने से गम दूर होते तो हम भी रो लेते,
मेरे मुस्कुराने से इतना हैरान क्यूँ है,
ऐ जिंदगी,क्या हुआ ?
तूँ इतना परेशान क्यूँ है?
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वाह बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ ❤
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वाह। अप्रतिम रचना 👌💐
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पसंद करने के लिए धन्यवाद🙏💕
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