
गरीब की जिंदगी में तो रोटी-कपड़ा हीं मुहाल है।
ये मिज़ाज का खेल तो साहब अमीरों का जंजाल है।
©Kavita
गरीब की जिंदगी में तो रोटी-कपड़ा हीं मुहाल है।
ये मिज़ाज का खेल तो साहब अमीरों का जंजाल है।
©Kavita
कहते हैं लोग कि बात क्या हुई ?
ऐसा भी क्या कहर बरपा है?
आखिर मर गया वो क्यों …
जिसे अभी यहाँ जीना अरसा है??
©Kavita
न खुबसूरत वो
न शादाब उसकी जुबानी
न चाहत उसे कोई
न बेकली उसके रात की निशानी
कुछ अजीब सी है वो..
और उससे भी अजीब उसकी कहानी
©kavita
शादाब- pleasant
बेकली- restlessness
खुद को खत्म जानता…
वो ह्रदय का प्रेम,
सबसे अनजान,
सारी इच्छाओं से विहीन होता हुआ भी..
पहचानता है.. तो सिर्फ प्रेम।
©Kavita
संघर्ष हीं जब अंतिम सत्य हो
जीत हीं एकमात्र तथ्य हो
तब पराजय से घबराना कैसा?
लगती है ठोकर..
लगने दो।
लंबी हैं राहें..
होने दो।
जब क्षितिज तुम्हारी मंजिल है
तो सूरज से पहले
ढल जाना कैसा?
©Dr.Kavita
जीवन है तो कुछ प्रण भी होगा।
कुछ पाने का मन भी होगा।
कुछ खोने का भ्रम भी होगा।
हो पथिक तुम ऐसे
जिसे हर बिते राह का स्मरण भी होगा।
होंगीं जंजालें अनेकों..
पर उन जंजालों में भी
तुम्हारे बुद्ध बन जाने का
कोई एक क्षण भी होगा।
©Dr.Kavita
तुम रणभूमी के योधा हो,
उठकर सीधा वार करो।
सूरज जब निकालेगा तब निकलेगा
तुम अंधेरे में हीं अभ्यास करो।
कण-कण तन मन
सब अपना तुम झोंका
ना नियति से कोई आस धरो।
लक्ष्य पाना हीं दुर्गम वय का हल है
लक्ष्य के आगे
हर कुछ का तुम परिहार करो।
तुम रणभूमी के योधा हो,
उठकर सीधा वार करो।
©Dr.Kavita
मेरी परवाह करने वाले भी बहुत हैं इस दुनिया में।
जैसे वो सुरज जो हर दिन उग जाता है,
नई सी ऊर्जा और रोशनी लिये.. मेरे लिए।
मेरे आंगन में लगा वो नीम का पेड़,
जिसकी पत्तियाँ लहलहाती हैं,
हर दिन थोड़ी और हरी हो जाती हैं मेरे लिए।
ये हवाएं ..जो मौजूद रहतीं हैं हर वक्त मेरे इर्द-गिर्द,
और लिये फिरती हैं सुकून और ठंडक..मेरे लिए।
नीला आसमां जिसने खुद को बना रखा है अन्तहीन
ताकि बातें सुन सके वो मेरी सारी, कुछ सार्थक, कुछ अर्थहीन।
जब तक ये सब हैं,
तब तक तन्हाईयों में भी
मानूंगी की मैं अकेली नहीं।
ये सारा कुदरत हैं मेरे लिए।
©Dr.Kavita
मेरी हंसी देख सकते हो तुम।
मेरी गुलाबी आंखों की छवि देख सकते हो तुम।
मेरे गालों पर पड़ते गड्ढे देख सकते हो तुम।
मेरे लंबे बालों की लट्टें देख सकते हो तुम।
मेरे तन का रंग देख सकते हो तुम।
मेरे शरीर की बनावट-ढंग देख सकते हो तुम।
सब देख सकते हो तुम,
फिर भी क्या मुझे देख सकते हो तुम?
रूह की चुभन, व्याकुल मन देख सकते हो तुम?
जो अथाह बेचैनी में गुजार दिए,
वो क्षण देख सकते हो तुम?
जिन्होंने उठा दिया निश्छलता से विश्वास
मेरे अंदर बसा उनका
जहरीला स्मरण देख सकते हो तुम?
अगर नहीं..
तो बस भ्रम देख सकते हो तुम।
झुठी हंसी, झुठा चलन देख सकते हो तुम।
देखकर भी मुझे नहीं देख सकते हो तुम।
©Dr.Kavita
मैं पीले पत्तों को गिरते देख रही थी।
गिरते पीले पतों ने भी मुझे देखा,
और मुझसे कहा-
क्या तुम जानती हो कि हम क्यों गिर रहें हैं?
मैं अपने अलहड़ से अंदाज में बोली-
बिल्कुल जानती हूँ।
तुम्हारे जाने का समय मुकर्रर था।
सावन में तुम आये, पतझड में तुमको झड़ जाना था।
अबतक पत्तें धरती को छू चुके थें।
उनमें से एक ने धीरे से कहा- वक्त है हमारा जो पेड़ से बिछड़ जाने का हो तो हम गिर जातें हैं।
पर तुम बताओ तुम जीते जी क्यों मर जाते हो?
हाँ मैं लड़की हूँ!
शायद इसलिए मेरे चरित्र की पड़तालें कुछ ज्यादा होतीं हैं।
मेरे कपड़ों पर सवालें भी ज्यादा होतीं हैं।
मुझे डर नहीं लगता जंगल के जानवरों से,
मेरी मुलाकातें आये दिन
शहरों, गलियों, दफ्तरों में दरिंदों से
ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!
तन तो सबको दिया है ईश्वर ने।
पर मेरे तन के लिए सबको अवांछित उत्तेजनाएं कुछ ज्यादा होतीं हैं।
मैं तो करतीं हूँ अपना काम मगर..
समाने वाले की नज़रें जब कहती हैं कुछ और,
तो सोचती हूँ कि क्यों
पुरुषों की चौड़ी छाती उनकी शक्तियां
और मेरे उभरे स्तन के लिए चिंतित अभिव्यक्तियां ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!
और ऐसी कोई जगह नहीं
जहाँ मुझे सहेजना ना पड़ता हो खुद को।
मिडिया के अश्लील कमेंट्स, मेसेजस और ट्रोलिंग में भी
मुझपर, मेरे जिस्म पर,
इस पर इस्तमाल किये गये कपडों पर,
मेरी चाल, हरकतों पर
अभद्र चर्चाएं ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!
सामान्य जिंदगी जीने की चाह में,
कुछ सपनों की राह में,
मैं घर से निकलूं भी तो..
मेरा दिमाग अपनी क्षमताओं के लिए कम
और मेरे शरीर के कुछ अंग
प्रलोभन की पात्राएं ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!
पर मैं और जिस्म मेरा कोई रहस्य नहीं।
फिर क्यों इसे सुलझाने की अनचाही कवायतें ज्यादा होतीं हैं?
आदमी भले मेरी असमत नोचने के लिए हैवान बना बैठा हो,
यहाँ मेरे हीं आदर्श बने रहने की रवायतें ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!
अब मैं खुद से करूँ नफ़रत?
या करूँ इस असुरक्षा पर संवाद?
मैं भले वक्त-बेवक्त बेआबरू कर दी जाऊँ।
पर मर्दों की इस दुनिया में,
उन्हें नग्न ना करने की हिदायतें ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!
This book titled ‘Faisla‘ is a hindi novel. The story of this novel shows the different emotions of human beings and the struggles they have in life regarding relationships and bonds. At every step in life, a person has to take some decision or the other. But any decision of a human being has an effect on him/her as well as the people associated with him/her. This novel is also the story of some of those decisions and the changes that take place in the lives of the characters because of those decisions. This story includes all the sorrows, joys, love, hate, hopes, duties, which are parts of any ordinary life. I wish for readers of this book that will love and enjoy reading this hindi novel story.
Title: Faisla
ISBN: 9781684876259
Format:Paperback
Book Size: 5.5*8.5
Page Count: 78
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तय कर लो,चाहते क्या हो?
जाने कि बात कर
रूक जाते हो हर बार।
रूकने का कह कर
खो जाते हो हर बार।
तय कर लो, चाहते क्या हो?
तय कर लो,
कि जिंदगी लंबी नहीं उतनी
जितना तुम समझ रहे हो।
तय कर लो,
कि कल प्यार के लम्हें बचेंगे नहीं उतना
जितना तुम आज दुशमनी में बहक रहे हो।
तो तय कर लो,
वक्त और भावनाएं बिन गँवाए
कि चाहते क्या हो?
©Dr.Kavita
चलो, अब मैं चलता हूँ।
क्षितिज की ओर निकलता हूँ।
तुम शाम बन ढल जाना।
मैं रोज़ हवाएं बन वहाँ चलता हूँ।
तुम सूरज की नारंगी छटाएं सजाना,
खुशबू मैं बिखेर दूंगा,
मैं फूलों को बयारें झलता हूँ।
चलो, अब मैं चलता हूँ।
चलो, अब मैं चलता हूँ।
ऊंचे पहाड़ों की ओर निकलता हूँ।
तुम झरनों सा बह जाना।
मैं बन पहाड़ों का पत्थर उनमें फिसलता हूँ ।
तुम नदियों में मिलकर मिठास बढ़ाना।
मैं वहीं किनारे टूटकर, मिट्टी में घूलता हूँ।
चलो, अब मैं चलता हूँ
©Dr.Kavita
I am very happy and feeling proud to introduce my First Coffee Table Book named- Parikalpna. 💃💃
This book is very unique and beautiful because it is full with lovely quotes and eye catching colorful prints and images. This book is able to keep you engage because of its beauty. So, it is very suitable for any reception or waiting area or lawn table.
In this book, I tried my best to reach the zenith of my creativity. And I Hope you will love this too.❤❤
Title: Parikalpna
ISBN: 9781685381073
Format: Paperback
Book Size: 8.5/8.5
Page Count: 100
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मैं इंतजार करूंगी..
कि तुम लौट आओगे।
तुम लौट आओगे,
अपनी मीठी बातें जेबों मे भर।
तुम लौट आओगे,
मुझे जो पंसद है
वो प्यारी सी मुस्कान
अपने होठों पर रख।
तुम लौट आओगे,
खुशियाँ मेरी सारी
अपने कांधे पर धर।
तुम लौट आओगे,
आंखों में जो मेरी
तुमसे मिलने की आस है
उसकी लाज़ रख।
तुम लौट आओगे,
जानकर मेरी, सिर्फ तेरा हो जाने की हठ।
तुम लौट आओगे।
मैं इंतजार करूंगी..
कि तुम लौट आओगे।
©Dr.Kavita
दुनिया बड़ी है, यहाँ देश कईं हैं।
उनमें विशेष देश हमारा,
जिसे और भी विशेष बनाती है हिन्दी ।
जहाँ करोड़ों की आबादी है ,हजारों बोलियाँ बोली जाती हैं ।
वहाँ 22 प्रमुख भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी बन जाती है हिन्दी ।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक सबको एक धागे में पिरोये रख पाती है हिन्दी ।
अनेकता में एकता, भिन्नताओं में अभिन्नता लाती है हिन्दी ।
यहाँ के कण-कण में बस कर यहाँ की मातृभाषा बन जाती है हिन्दी ।
हजारों सालों का इतिहास लिए,
अरबी, फ़ारसी, पश्तो, तुर्की जैसी कई भाषाएँ अपने अंदर समाती है हिन्दी ।
तुलसी-सूरदास, मलिक मुहम्मद, मीराबाई, बिहारी, भूषण जैसे महान कवियों की रचनाओं को अमर बनाती है हिन्दी ।
और मुग़लों, अंग्रेज़ों का विरोध सह कर भी,
घर-घर पहुँच , खुद की रक्षक बन जाती है हिन्दी ।
जहाँ लोग कईं हैं, संस्कृति कईं हैं,
मान कईं-पहचान कईं हैं।
वहाँ अनूठा रगं लिए…
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नफ़रतों की ये दिवार जब भी तुम गिराओगे,
उसके स्नेह की दबी लाश जरूर पाओगे।
कहना चाहोगे तब तुम कुछ सहसा,
पर कुछ कहने सुनने के लिए उसे ना पाओगे।
फिर थोड़ा सोचोगे,
थोड़ा पछताओगे।
मुड़ कर जो देखोगे,
तो पिछे तनहा उसको हीं पाओगे।
लौटने को तुम वापस फिर
मचल-मचल से जाओगे।
पर जो ढूंढोगे रस्ता,
खुद को भटका-भटका पाओगे।
झल्लाकर तब तुम
किसी किनारे रूक जाओगे।
प्रेम की दरिया टटोलोगे खुद में,
और स्वंय को सूखा-सूखा पाओगे।
फिर एक ठंडी सांस ले तुम
आगे को बढ़ जाओगे,
नफ़रत की गलती ना कर,
प्राण में प्रणय बसाओगे।
अब सुन लो बात मेरी,
तब तुम बेहतर हो जाओगे।
थोड़े संयम, थोड़े धीरज से
हौले-हौले भर जाओगे।
मोह-माया से ऊपर उठ कर,
एक नया व्यवहार लाओगे।
नफ़रतों की ये दिवार जब भी तुम गिराओगे।
©Dr.Kavita
मैं तुम्हें नहीं जानती।
और शायद कभी जान भी न सकूंगी।
क्योंकि तुम्हारे चेहरे की मुस्कान,
तुम्हारे अंदर की वेदना कभी बाहर आने नहीं देगी।
मैं तुम्हें इसलिए भी नहीं जान पाऊँगी क्योंकी
तुम किसी और राह के मुसाफिर हो
और तुम्हारा अपनी राह छोड़,
मेरा हमराही हो जाना कभी मुमकिन ना होगा।
एक वजह और है मेरा तुम्हें ना जानने की
कि हम बहुत मिलते-जुलते से तो हैं,
पर हम कभी मिले नहीं।
तो हां,
मैं कह सकती हूँ कि
मैं तुम्हें नहीं जानती।
©Dr.Kavita
कभी कभी हमें अपनें अपराध ताउम्र समझ नहीं आते।
ऐसा नहीं की हमें उनकी सजाएँ नहीं मिलतीं,
तिरस्कार नहीं मिलता।
सब मिलता रहता है बराबर
बस,
इस समझ-नासमझ के बंधनों से निजात नहीं मिलता।
How it feels to hold your own book in your hands. Believe me it feels awesome.🤗🤗This book is not only beautiful from outside but from inside too. I promise to all those who have ordered and will soon get my book that they will be very much happy and satisfie to see and read this. And don’t forget to send me your pics with my book.🥰🥰
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शहीद से बिछड़ने का विरह…
छुप जाता है योधा पति की
कुर्बानी और देशभक्ति से
गर्वित पत्नी के नम आंखो के पिछे।
First of all I would bow down to God who has given me the ability to think, write and understand the circumstances of others.
Then i would like to dedicate this book to my parents, my two elder brothers and my sister and brother-in-law who encouraged me to write.
I am very thankful for my writer friend Ashish Kumar aka ‘Shanky’ ‘s support also, who gave me proper guidance in presenting this book to everyone.
I would also like to express my gratitude to my friends – Alka Bharti, Geetanjali Verma, Ankita Jaiswal, Pankaj Pathak, Bharti Kumari, Neha Prasad, Vijeta Anshul, Kirti Pandey, Kashmiri Khandait, who encouraged me to write sometimes.
In the end, I would like to dedicate this book to all those who are willing to understand women and looking forward to read this work of mine.
This collection of poems entitled ‘Streemann’ focuses on the feelings of women.
Being a woman is a sweet and beautiful feeling but also full of struggles. No matter their class, place or country of origin, women face different problems, different social thinking and different rules. They have to pass through various parameters of society, so the certain feelings are common to all women in this world. This book is totally devoted to women and their sentiments. As a woman writer, i regard it as my duty to express the thoughts and feelings of other women like my own in my first-ever book.
Currently My Book is available on Amazon & Notionpress.
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वो योद्धा है,
वो लड़ना चाहती है।
घायल शोणित पाँव लिए भी
वो चलना चाहती है।
वो योद्धा है,
वो कायरता को धिक्कारती है,
बुज़दिली को अस्वीकारती है।
प्रतिकूल आज लिए,
रक्त में क्रोध की धाह लिए
वो जलना चाहती है।
वो योद्धा है।
वो लड़ना चाहती है।
धरती सिर्फ हमारी नहीं,
फिर हम क्यों हैं खड़े दूसरों के हिस्से को रौंदे?
हवाएं बहती हैं तो सिर्फ हमारे लिए नहीं।
तो क्यों है फ़ितरत हमारी
इसे अपने स्वार्थ के लिए विषाक्त बनाना?
क्यों हमारी आदत है अंधाधुंन कार चलाना, बेफिक्र धुआँ फैलाना?
खुद को सुविधाओं से लैस कर,
स्वंय के लिए हवा विशुद्धकरण के अनेकों उपचार लगाना,
और पौधों, जानवरों को दुविधाओं में धकेल आना।
सिर्फ अपने लिए सोचना और
जीवन को उनके विरक्त कर जाना।
ईश्वर का चमत्कार है,झरनों से
सबके लिए पानी गिराना।
फिर किस हक से हम इसका इस्तेमाल कर,
दूसरों के लिए इसे छोड़ जातें हैं गंदा?
किस हक से हम फेंक समुद्रों में कचरा-प्लास्टिक,
बनाते हैं दूसरें जीवों के गले के लिए फंदा।
पंछियों का काम है थक कर पेड़ों पर लौट आना ।
तो जो कम हों पेड़, तो लाज़िम है उनका विलुप्त हो जाना।
कितना उचित है हमारा जंगलों के जंगल काट आना?
घर अपना सजाने में, खुद के लिए कांक्रीट बिछाने में,
मासूम पौधों, पशु-पक्षीयों का जीवन कठिन-दुर्लभ बनाना?
अब भी समय है, हो सके तो इन सब सवालों पर गौर फरमाना।
केवल अपने लिए नहीं,
धरती पर रहने वाले दूसरें जीव-जंतुओं
का भी ख्याल अपने ध्यान में लाना।
कितना आसान है मेरा कहना, उसका सुनना।
उसका कहना, मेरा सुनना।
पर काश ये बातें सिर्फ जुबान से कान तक की नहीं,
दिल से दिल तक की भी होतीं।
दुनिया के सामने यूँ रोया ना करो,
टूटे हुए दिल से निकले शब्दों को
यूँ खोया ना करो।
बेहतर हो, तुम उन्हें पन्नों में उतार लो।
दर्द अपने सारे शब्दों में ढाल लो।
बिखरे वो पन्ने भले ना समझ पायें
कि तुम बिखरे हो कितना।
पर शायद वो तुम्हें सहेज लें उतना,
कोई और सहेज ना पाए तुम्हें जितना।
सोचती थी सारी दुनिया कि
था सब कुछ उसके पास।
सुन्दरता, जवानी
और आंखों में कुछ बड़ा करने की प्यास।
उसकी सुंदर काया उदाहरण थी,
जबाव थी, ईश्वर के चमत्कारों की,
उसके होने की,
उसके होने के सवालों की।
पर क्या सच में सबकुछ था उसके पास?
गरीबी ने उसका विवाह कुछ जल्दी हीं कराया।
डिग्रियां भी उसकी धरी रह गयीं, जब ससुराल वालों का उसने साथ ना पाया।
कोई नहीं जानता था कि उसके आँखों की
खूबसूरती के पीछे छुपे थे उसके आंसू।
तन तो चकाचौंध था,
मगर मन पर फैला था गम का घनघोर अंधेरा।
कोई समझ नहीं पाया था उसे।
उसकी भी सबसे हो गयी थी ऐसी कुछ नाउम्मीदी,
कि किसी के समझ में वो आना थी भी नहीं चाहती।
अनगिनत तिरस्कार, असंख्य दर्द झेल चुका था अब तक उसका अन्तर्मन।
छिन्न भिन्न हो चुका था उसका सारा स्वप्न।
पर अपनी छोटी बिटिया की खातिर,
वो रहती थी सदा हीं मुस्कुराती।
सब ठीक हो जायेगा एक दिन, की आस में,
ना किसी को अपनी व्यथा बताती।
ना थी किसी के आगे आंसू बहाती।
वो बस चुप होती थी,
हर वक्त कहीं गुम होती थी।
पर उसके चेहरे पर हंसी की कमी
और आंखों में हर पल रहने वाली नमी,
समझने वालों को समझा हीं जाती थी
उसकी अनकही कहानी।
जिन्हें दुनिया समझती थी उसका फिक्रमंद।
उन्होंने हीं कर रखा था,
टुकड़े-टुकड़े उसके खुशियों का छंद।
बिटिया नहीं बेटा लाओ, नहीं तो घर से बाहर जाओ!
ये धमकियां उसके जिंदगी में आम थी।
सारे एक जैसे थे।
डराना, हाथ उठाना जैसी घटनाएं भी सरेआम थीं।
अब सवाल था कि कब तक वो ये सब सहेगी?
यूहीं चुप रहेगी?
सब ठीक हो जायेगा..
ये बात, वो कब तक खुद को कहेगी?
फिर एक दिन इंतजार खत्म हुआ।
सवाल खत्म हुआ।
जब रोक लिया उसने अपनी ओर उठते हाथों को।
जब उसने सवाल किया था मिला कर, उनकी आँखों में अपनी आँखों को।
“भांती नहीं तो शादी क्यों किया था?
मेरी बच्ची और मुझको बोझ हीं समझना था तो गरीब माँ-बाप से मेरे इतना दहेज़ क्यों लिया था?
भोर से शाम, शाम से रात,
सबका हर काम मैं करती हूँ।
फिर मैं बोझ कैसे?
अपना सब कुछ दे दिया है मैंने।
खुद का वजूद तक खो चुकी हूँ।
फिर ये सोच कैसे?
बिटिया हो या बेटा, क्या होता है?
बातें तुम सबों की सुन, मेरा दिल रोता है।
धमकाया करते हो रोज।
लो, आज मैं खुद निकल जाती हूँ।
ये बच्ची है मेरी, कोई बोझ नहीं।
जीवन इसका मैं अपने दम पर सँवारूंगी,
ये प्रण पाती हूँ।”
इतना कह वो चली गयी।
एक हाथ में बच्ची, एक हाथ में डिग्रियां लिए
वो आगे निकल गयी।
ये जो बंधन है जीवन में तुम्हारे,
तुम्हारी परिभाषा नहीं।
समंदर हो तुम, नदी नहीं।
बांध सके कोई तुम्हें,
ऐसी किसी से आशा नहीं।
©Dr.Kavita
मेरे रहते,
ख़्वाबों में तुम्हारे आया करती थी जो लड़की,
अब वो तुम्हारी हमनशीं तो नहीं?
जला करता था जो दिया, आंगन में तुम्हारे।
बुझा मिलता है अब वो अक्सर।
कहीं कोई नमीं तो नहीं?
गये थे तुम, हम नहीं।
गर दुखी हो फिर भी..
तो पूछेंगे,
कि अब भी किसी की याद-ए-कमी तो नहीं?
©Dr.Kavita
Thank you so much my lovely bloggers for following me on WordPress 100 times over! I’m grateful for all your support. I promise to continue writing harder in serving you.
Thank you to all of my friends and those who have commented on my posts, and replied to my comments. It really means a lot. Everyone is so kind, helpful and welcoming in making my this blogging journey even more amazing! It’s so awesome to see my hobby grow into something even more amazing. Thank you so so much! I hope this blog continues to grow! And I’ll be able to contribute even more in writing world.
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You can also get me on writing platform i.e. Instagram
Thank you so much for your kind support.
©Dr.Kavita
ख़्वाहिशें कहती हैं कुछ,
कुछ.. करतें हैं हम।
सोच तो नई लिए जगते हैं हम।
फिर ज़िम्मेवारियों का दिखता है भरा बस्ता।
फिर क्या?
जिधर ले चले जिंदगी,
उधर निकल पड़ते हैं हम।
©Dr.Kavita
जितना अच्छा मुस्कुराते हैं,
उससे भी बेहतर..
दर्द छुपाते हैं पापा।
कहते हैं जो कम और
कर जाते हैं ज्यादा।
मुश्किल हो कैसी भी,
हल कर जाते हैं पापा।
आँखें कर बड़ी बड़ी डराते हैं पापा।
पर कुछ हो जाए जो बच्चों कों…
तो सहम जाते हैं पापा।
©Dr.Kavita
मिट्टी, मूरत, सोच, सूरत,
प्रथना-अर्पण, हर क्षण समर्पण,
साज-श्रृंगार, पहनावे का व्यवहार।
क्या कुछ तेरा अपना है?
पलना, बढ़ना, ढलना तेरा, सब तो उनकी मर्जी है।
मन का अपने करो नहीं,
इज्जत सबकी नीचे धरो नहीं,
ऐसी उनकी अर्जी है।
कहते हैं वो, स्त्री मन है, कोमल है
और पुरुषों का मन चंचल है।
सो पाबंदी-दस्तूर बेवजह नहीं,
स्त्रीयों की हीं बेहतरी की पहल है।
तेरा लज्जाना, नज़र झुकाना
बातें सुनना मुस्कुरा कर,
और हंस कर स्वीकार कर जाना,
सब शालीनता हीं तो है।
जो आंखे मिला कुछ कह जाओ,
अपनी सुना कुछ कर जाओ,
तो वो उसी शालीनता में खलल है।
©Dr.Kavita
अरमानों के अपने पंख हैं,
खवाबों की अपनी उड़ानें।
खुद छू लेंगीं वो आसमां,
तुम उन्हें आजाद तो करो।
शर्तें अपनी बनाओ,
हिसाब अपने लगाओ।
एक बार खुद पर,
एतवार तो करो।
जिंदगी एक मिली है,
बातों में आ दूसरों की,
इसे यूहीं जाया-बरबाद ना करो।
खुल कर जियो।
मन के बंधनों से मुक्त हो,
खुद को आबाद तो करो।
©Dr.Kavita
कहने के लिए तुम-तुम हो
और मैं-मैं
पर क्या…
हम सच में इतने अलग हैं?
क्या हमारा दिल एक हीं बात पर नहीं रोता,
या खुश होता है?
क्या तुम्हें कुछ अच्छा सुन अच्छा नहीं लगता,
जैसे मुझे लगता है?
या बुरा सुन
क्या तुम्हें दुख नहीं होता?
क्या ख्याब तुम्हारा पीछा वैसे हीं नहीं करते,
जैसे मेरा करते हैं?
क्या तितलियाँ, हवाएं, पहाड़ तुम्हें नहीं लुभाती,
जैसे मुझे लुभाती हैं ?
क्या तुम्हारी तृपता
मेरी संतुष्टि के अनुभव से अलग हो जाती हैं?
और बेचैनी भरी रातें क्या
तुम्हें नहीं सताती हैं?
क्या बच्चों की मुस्कान
तुम्हें आनंदित नहीं करती जैसे मुझे करतीं हैं?
जब हमारी खुशियाँ, दर्द, प्यास,
हर जज़्बात और अहसास
सब एक से हैं,
तो हम अलग कैसे?
तुम-तुम कैसे?
और मैं-मैं कैसे?
ये नफ़रत कैसे?
ये अंतर-भेद कैसे?
©Dr.Kavita
तुम्हारी आँखों में भी एक कहानी है
और बातों में भी
बताओ तुम मैं किसे सुनूँ?
©Dr.Kavita
आसमानों में गिद्ध,
नदियों में लाशें तैर रहीं थी।
और पुल किनारे पत्रकार खड़ा था,
वो तस्वीरें लेता और सोचता।
कि जिन लाशों को वो गिन रहा है,
क्या सरकारी आकड़ों ने भी उन्हें गिना होगा?
©Dr.Kavita
भिंगते हुए बारिशों में मुझे ख्याल आया,
कि मैं गीली जरूर थी पर खुश थी।
©Dr.Kavita
मेरे एक-एक जज्बे की कायल है मेरी रूह।
कोशिश मेरी कैसी भी हो, छोटी या बड़ी,
मेरे कुछ करने भर से वो उछल पड़ती है खुशी से।
अच्छा लगता है उसे मेरा वो करना, जो मैं करना चाहती हूँ।
मुस्कुराती है वो जब मैं दूसरों के सोच की परवाह नहीं करती।
और सुकून पाती है,
जब जब मैं अपनी जिंदगी अपने शर्तों पर जीती हूँ।
वो चाहती है, मैं अनसुना कर दूँ दुनिया जहान की बातें।
वो चाहती है, मैं सुनूँ सिर्फ उसकी,
या उनकी जो मुझसे स्नेह रखते हैं।
ज्यादा कुछ तो नहीं चाहती वो।
बस वो सोने के पिंजरे में बंद,
आसमान को ताकती किसी पंछी की तरह घुटना नहीं चाहती।
रूह मेरी सिर्फ जिंदा रहना नहीं चाहती,
वो जीना चाहती है।
©Dr.Kavita
मजबूत रहना भी विकल्प है।
लड़ना भी एक संकल्प है।
वहां हार जाने से मिलता है क्या?
जहाँ खोने को सर्वस्व है।
©Dr.Kavita
लाशें जलती हैं बेतहाशा।
सांसे थमती हैं, घुटती हैं।
और हर पल खोती है आशा।
उम्मीद किसने चाहा नहीं?
दुआ किसने मांगी नहीं?
वक्त मुकर्रर होता है माना।
पर कबूल नहीं, यूँ अधुरा सब छोड़ जाना।
जो जग सकते थे उनका बेवक्त सो जाना।
दूर बिलखते अपने और उनका बंद थैलीयों में खो जाना।
मजबूरी है कैसी, की छू नहीं सकते,
आखिरी वक्त भी गलेे लग रो नहीं सकते।
वो बच सकते थे,
वो बच सकते थे,
गर सुदृढ़ सुविधा होती।
बिमारी होती भी, पर लाचारी की दुविधा ना होती।
जब गुजरेगा ये सब,
तो बचे लोग संभालेंगे अपनी अंतर्दशा।
क्योंकि जो हो रहा है, मुश्किल हीं से जायेगी इसकी व्यथा।
©Dr.Kavita
गलती हो गयी थी मुझसे,
कि मैं हारने लगी थी।
मंजिल छोड़, अड़चने ताकने लगी थी।
उम्मीद का दामन पकड़ना था मुझे,
पर मैं निराशा का हाथ थमाने लगी थी।
बात लोगों कि सुन, खुद को कम आंकने लगी थी।
गलती हो गयी थी मुझसे,
कि मैं हारने लगी थी।
©Dr.Kavita
रूह जिंदा रखना
थोड़ी ख़्वाहिशों में भी दम भरना
गिर जाओ चाहे सौ बार
तुम एक बार फिर, आगे कदम धरना
संघर्ष लंबा हो कितना भी
उम्मीदें कम ना करना
किसी और के लिए नहीं,
तुम खुद के लिए खुद की कमियों से लड़ना
रूह जिंदा रखना
थोड़ी ख़्वाहिशों में दम भरना
©Dr.Kavita
नहीं याद नहीं आती ।
हर बात में.. अब तुम्हारी बात भी नहीं लाती।
पर खुश हो ना तुम, मुझसे दूर हो कर…
ये पूछना था।
कैसे हो तुम ..
©Dr.Kavita
उम्मीदों में खोयी, आखों में खाब़ पिरोयी,
हालातों से.. वो लड़ती लड़की ।
कुछ को वो भांती..
कुछ को ..वो खटकती ।
वैसे चुप होती है,
कहीं गुम होती है ।
पर बात करो तो.. हर बात पर चिढ़ती ।
बेफ़िजूल दस्तूरों पर वो… भड़कती लड़की।
औरत की काया में तुम्हारी आत्मा घुट रही हो बेशक
पर happy women’s day..
तुम चीखना चाहती हो लेकिन कुछ कह भी नहीं पा रही
पर happy women’s day ..
तुम्हारी जिंदगी के फैसले लिए जाते हैं , पर तुम्हारी राय नहीं
फिर भी happy women’s day ..
तुम happy नहीं , तभी मुस्कुराती हर वक्त हो
इसलिए तुम्हें happy women’s day..
औरत …
ह्दय तुम्हारा ..संमदर है ।
मन.. जैसे कोई धर्मकथा ।।
सबने हीं तुमसे कुछ पाया है
तुने भी सबका ध्यान धरा।।
तू कल्पतरू की छाँव है वो,
जिससे है संसार हरा।।
स्त्री है तू , तुझमें है सौम्यता ।
पर सोच में है पुरुषार्थ भरा।।
मायावी सा जग है सारा ।
जहाँ तू..निश्छलता की सूरत है ।
सिर्फ ममता नहीं …लौहकन्या भी है तू ।
हर रिश्ते में ढल जाए , पर मजबूती की मूरत है।।
दिल से जिसकी तू हो जाए ,मृत्युशय्या तक साथ निभाए।
साथ तुम्हारा सिर्फ साथ नहीं …
सबकी जरूरत बन जाए ।।
विश्वास मिले जो थोड़ा तुझे , तू जुगनु सी हो जाये ।
अपनी चमक से रोशन करे सबको ,
खुद भी उड़ती – खिलती जाए।।
हर अलफ़ाज के अपने राज़ होते हैं ।
कुछ अनुभव, कुछ अहसास ,कुछ हकीकत
तो कुछ बस ख़्वाब होते हैं ।
अपना बनाना नहीं,
तो हमें आजमाते क्यों हो ??
हमसे दिल लगाना नहीं,
तो हमें देख मुस्काराते क्यों हो??
जब शक्ल कहती है हमारी …
की हम आ जायेंगे तुम्हारी बातों में ।
फिर मीठी बातें कर हमें पागल बनाते क्यों हो??
इंतजार है ..
इंतजार के खत्म हो जाने का ।
मिले हर घाव के भर जाने का।
मुड़ मुड़ कर देखने की..
मेरी फ़ितरत के मर जाने का ।
थक कर भी जगे रहने की आदत से
एक दिन थक जाने का ।
मिली हर नाशुक्री , बेकद्री को अपनी जहन से मिटाने का।।
यादों में आने वाली हर बुरी याद के गुम हो जाने का ।
खोए विश्वास को वापिस पाने का ।
फिर से नए ख्याब सजाने का।
झुठी हंसी भुला , दिल से मुस्काने का ।
किसी बाल मन जैसे बेफिक्र हो जाने का।
नाखुश से इस सफर में बेइंतिहा खुशियाँ पाने का।
इंतजार है कभी ना खत्म होने वाले
इस इंतजार के खत्म हो जाने का ।।
इंतजार है …..
सोए रहते हैं बेहोश वर्षों तक।
जग जाते हैं इत्तफाकन तो बबाल करते हैं ।
जताते हैं समझदारी अपनी ।
सही गलत क्या है , सवाल करते हैं ।।
इज्जत मिली या जिल्लत, असर नहीं ।
वक्त बचा है कितना, खबर नहीं ,
बरहाल कीमती पल अपना बेकार करते हैं ।।
उलझे रहते हैं सबके तंज- तानो में ।
जो खुद बे-वजूद है उनके संवादों में ।
ख़ामख़ाह गैर-जरूरी बातों का हम ख्याल करते हैं ।
हम खुद से खुद का कहें हाल ,
तो वो फर्जी सा लगता है ।
और तुम ख़ुद-बख़ुद समझ जाओ।
ये तुम्हारी मर्जी पर निर्भर ,
हमारी किसी बेतुकी अर्जी सा लगता है ।
कितनी मुश्किल से कह पाते हैं हम अपनी बात।
जब वो भी ना कबूल होता है।
दिल करता नहीं कुछ कहने को।
चुप रहना हीं मंजूर होता है।
पर यहाँ भी खत्म होती नहीं कहानी।
इस पर भी उठ जाते हैं सवाल।
कभी नासमझ, कभी बेबस, कभी बेचारी ..
जैसे मिल जाते हैं उपनाम।
कहना भी है गुस्ताखी..
हमारा चुप रहना भी फिजूल होता है।
दर्द मिलना…होता होगा बुरे कर्मों की सजा।
पर मेरा तुम्हें चाहना..कभी बुरा नहीं हो सकता।
माना मिलता नहीं इश्क की राह में कुछ भी।
पर कुछ पाना ..
मेरा तुमसे दिल लगाने की वजह नहीं हो सकता।
मंजूर है हमें कि तुम करो नामंजूर हमें ।
हम इस गुमान में खुश रह लेंगे ..
कि तुम वाकिफ़ हो हमारे आरज़ू से।
तुम मुझे मना ना सके।
और मैं खुद से मान ना सकी ।
रूठी रही मैं खुद से भी ।
और तुम्हारे दिल की भी मैं जान ना सकी।
हमने अपनी ख्वाईशों का दायरा और बढ़ा लिया।
आप मिल हीं जाओगे हमें कभी ना कभी ..
ये सोच कर थोड़ा मुस्कुरा लिया।
बस दो टूक तुम..देख लो प्यार से।
मुझे मेरी मन्नत मिल जायेगी।
नहीं चाहिए ये दुनिया, ये दौलत।
बस मुझे तुम मिल जाओ।
मुझे मेरी जन्नत मिल जाएगी ।
मैं मिलती रही खुद से..
पर तुम्हें हर पल खोती रही।
ऐसे हमारी दूरियों से मेरी नजदीकी होती रही।
फ़साना फिर ना पुरा हुआ..अधुरे से।
तुम जाते रहे मुस्कुराते हुए..
और मैं फिर रोती रही।
अगर तुम्हारे कोई साथ नहीं।
तो बिन पूछे सच्चाई..
हम कह देते हैं कि हम भी नहीं तुम्हारे।
पर ग़र पागल है..
तुम्हारे पीछे पूरी ये दुनिया।
तो बिन जाने पूरा किस्सा..
हम भी हैं उस भीड़ का हिस्सा।
सबको जला दूँ तुम्हारी तारीफों से।
इतने खूबसूरत मुझे लगते हो तुम।
तुम भी कभी देखा करो मेरी आखों से खुद को।
फिर समझोगे कि क्यों कहती हूँ..
कि मेरे लिए ख़ुदा के सूरत से हो तुम।
कह कर उनको थक गया की मुझे भूल जाओ।
याद करने की सही वज़ह नहीं हूँ मैं।
जो तुम्हें याद करें.. तुम भी उन्हें अपनी यादों में लाओ।
सुधारने की हमें जधोजध में ना आओ।
हम तो नालायक थे, हैं और रहेंगे ।
तुम अपनी जिंदगी किसी अच्छे के साथ बिताओ।
साथ उनका ना होना भी कुछ साथ लाया है ।
भूल चुका हूँ बेकार की आशिकी।
जिंदगी का मकसद और घरवालों का प्यार याद आया है।
कभी-कभी लगता है सबसे ज्यादा दर्द अपने हिस्से आयी है।
फिर देख लेती हूँ अपनी माँ का चेहरा।
तो हो जाता है अहसास कि बिन मांगे बेइंतिहा खुशियाँ भी हमने पायीं है।
रात के ख्याबों का फ़साना अगर दिन में गुम हो जाए..
तो वो कोई ख्याब नहीं ।
दिल में चुप बैठी कोई बात है ।
जो रह-रह कर जग जाती है ।
कभी-कभार याद आती है ।
और अधुरे रंग लिए वक्त- बेवक्त चुभ जाती है ।
तुम्हें मेरे दर्द की मऱहम जो मिल जाए,
तो मुझसे छुपाना।
अब बनने लगी है इस दर्द से मेरी ,
आ गया है इसका साथ निभाना।
इसने अकेलेपन में भी मुझे अकेला ना छोड़ा।
अब ग़लत होगा मेरा इसे छोड़ जाना।
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ना कांच की छतें ,
ना दिवारों की बंद खिड़कियाँ,
क्या रोक सकी हैं तुम्हें?
क्या रोक सकेंगी?
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तुमने कहा – आओ…
मैं आयी।
तुमने कहा- जाओ…
मैं लौट आयी।
माना गलती मेरी थी।
क्योंकि कदम मेरे थे…
पाँव हमारा था।
पर इस दिल का क्या?
जो सिर्फ समझता इशारा…
तुम्हारा था।
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ख्याबों में भी देखा,
तो क्या देखा मैंने।
तुम मुस्कुराते रहे
और खुद को रोता देखा मैंने।
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दर्द समझने की भी क्या काबिलियत दी है खुदा तुमने मुझे,
कि मुस्कुराहटें छोड़, हर दफ़ा उदास कहानी की तरफ मुड़ जाती हूँ।
ऐसे खो देती हूँ हर बार खुश होने का मौका,
और दूसरों को दुख से उबारने की तैयारी में जुड़ जाती हूँ
©Dr.Kavita
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Whom you will trust ????
All will break your heart ..
Tear up your soul ..
And snatch your laugh..
©Dr.Kavita
Because I know you…
Know you since start.
Because I have seen you…
Seen you in the dark.
©Dr.Kavita
लिखती इसलिए नहीं की तुम मेरे एहसासों को महसूस करो।
पर इसलिए कि गर मर जाऊं अनायास ,
तभी तुम मुझे महसूस करो।
यादों में ही सही ..याद रखो..
दिल में ना तो ना सही,
कहीं तो महफ़ूज रखो।
अच्छाईयों का इन्तहां लोग इस कदर लेते हैं ।
कि या तो इसको साथ रखे आप खुद को बर्बाद कर लो।
या तो खुद को बर्बाद भी कर लो
और इसका साथ भी छोड़ दो।
झूठ ओढे सच तलाश रहें।
लोग भी नादान है अब
झूठ के डर से झूठ जी जा रहें।
जानते नहीं ,
सच को सिर्फ सच है पहचानता
और झूठ को देर सवेरे सब।
उदास चेहरे पर मुस्कान कहाँ से लाऊं?
जो खो दिया ,वो पहचान कहाँ से लाऊं?
मन मेरा भी है कि करूणा रस से वात्सल्य और श्रिंगार रस की कवि बन जाऊं ।
पर वो प्रेम और स्वाभिमान कहाँ से लाऊं ।
जब लगे कि खुदा हीं रूठा बैठा हो तो वो अनुमोद, वरदान कहाँ से लाऊं ।
उदास चेहरे पर मुस्कान कहाँ से लाऊं?
वो खोयी हुई पहचान कहाँ से लाऊं?
तुम नाराज किससे हो??
अपने दिल से ….??
दिमाग से…??
अनंतरमन की आवाज से ..??
तुम्हारी कौन सी ऐसी भावना है जिसे शब्द नहीं मिल रहे ..??
कौन से ऐसे जज़्बात है जिसे सूरत(ए)हाल नहीं मिल रहा ??
कौन से ऐसे खयालात है जिन्हे कहने को अलफाज नहीं मिल रहे ??
कमी क्या है समझ क्यूं नहीं पा रहे ..??
नमी क्यों है समझ क्यूं नहीं पा रहे ..??
सवाल वही है ।
तुम नाराज किससे हो…??
अपने दिल से ….??
दिमाग से…??
या अनंतरमन की आवाज से ..??
एक अजीब दरिया है वो
विशाल-सा।
है निर्जन नहीं, फिर भी है एंकात-सा।
नदियां मिलती तो कई हैं उसमें
पर वो बदलता नहीं।
सितारे कितनी भी उसमें अपनी परछाई छोड़ जाए
पर वो चमकता नहीं ।
समेटे रहता है ना जाने कितना कुछ अपने अंदर
पर उफनता नहीं , हमेशा हीं रहता है शांत- सा।
फ़िजाओं में गूँजा करती थी,
कल तक सुरीली सी हंसी तुम्हारी।
चुप-चुप सी रहती हो अब।
क्यों कुछ बोला नहीं करती ?
क्या तुम भी बड़ी हो गयी ?
सबब सच्चे होने का था- दिल साफ़ होना ।
सबक सच्चे होने का मिला- खुद को खोना ।।
मलाल ये नहीं की हमें सजाएँ पर सजाएँ मिल रही हैं ।
मलाल तो बस इतना है कि कोई हमें हमारी ख़ता नहीं बता रहा।
मलाल ये नहीं की हम मरते और वो जीते हैं ।
मलाल तो इस बात का है कि हमें मरता देख वो थोड़ा और जी लेते हैं ।
जब जीना एक मलाल बन जाए
और मरना भी मुहाल हो जाए ,
तो समझना सही समय आ गया है ।
समय आ गया है ,
खुद में हीं खोने का
सारे बँधनों से विमुक्त होने का।
मिली गालियों पर भी मुसकराने का।
वक्त बेवक्त झुम जाने का।
समय आ गया है ,
महफ़िलों में रंग जमाने का
हर बात पर टिठठकीयां लगाने का ।
बच्चों के संग दौड़ जाने का
बूढों के संग झपकीयां लगाने का ।
समय आ गया है ,
पिछे का पिछे छोड़ आगे बढ़ जाने का,
अपने दिलों से हर बोझ हटाने का
और जिंदगी को पूरा जी जाने का।
कितनी अहमियत दे रखी है तुमने इस दुनिया को इनसान ,
वो दुनिया जो किसी की परवाह नहीं करती।
वो जो अकेला छोड़ जाती है एक अकेले को,
और भीड़ बन जाती है ईक झूठी तस्वीर के पीछे ।
वो दुनिया जो भूखे को रोटी मांगने पर धक्का मारती है ,
और रोटी फेंकने वाले से डर कर कुछ नहीं कह पाती है।
वो दुनिया जो समाज के नाम पर इंसानियत भुल जाती है ,
और कभी कभी तो हैवानियत की भी दलीलें दे जाती है ।
क्यों इतनी अहमियत दे रखी है तुमने इस दुनिया को इनसान ।
जलते आग के लपटों की तरफ़
वो बढ़ता फतंगा।
रोक रहे जिसे सब,
तेज रोशनी में चकाचौंध , अपनी हीं बातों
पर वो अड़ता फंतगा।
कल से अनजान,
आज में खोया , मदमस्त होया,
वो बहकता फतंगा।
जलते आग के लपटों की तरफ़
वो बढ़ता फतंगा।
दुनिया बड़ी है, यहाँ देश कईं हैं।
उनमें विशेष देश हमारा,
जिसे और भी विशेष बनाती है हिन्दी ।
जहाँ करोड़ों की आबादी है ,हजारों बोलियाँ बोली जाती हैं ।
वहाँ 22 प्रमुख भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी बन जाती है हिन्दी ।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक सबको एक धागे में पिरोये रख पाती है हिन्दी ।
अनेकता में एकता, भिन्नताओं में अभिन्नता लाती है हिन्दी ।
यहाँ के कण-कण में बस कर यहाँ की मातृभाषा बन जाती है हिन्दी ।
हजारों सालों का इतिहास लिए,
अरबी, फ़ारसी, पश्तो, तुर्की जैसी कई भाषाएँ अपने अंदर समाती है हिन्दी ।
तुलसी-सूरदास, मलिक मुहम्मद, मीराबाई, बिहारी, भूषण जैसे महान कवियों की रचनाओं को अमर बनाती है हिन्दी ।
और मुग़लों, अंग्रेज़ों का विरोध सह कर भी,
घर-घर पहुँच , खुद की रक्षक बन जाती है हिन्दी ।
जहाँ लोग कईं हैं, संस्कृति कईं हैं,
मान कईं-पहचान कईं हैं।
वहाँ अनूठा रगं लिए, ईक अभिमान संग लिए,
हमें राष्ट्रवाद का अनुभव कराती है हिन्दी ।
भारत के जन-जन से जुड़ कर, इसे गौरवान्वित कर जाती है हिन्दी ।
अनोखा है भारत अपना , इसे और भी अनोखा बनाती है हिन्दी ।
मेरी ये तस्वीरें मुझे मेरी क़ीमत बताती हैं।
बहुत मर कर देखा सब पर।
मेरा ये हँसता चेहरा , मेरी ये मुस्कान
अब मुझे खुद पर मरना सिखाती हैं ।
सबको चाहा , बेहद चाहा ,
पर मेरा उन तस्वीरों में तनहा होना
मुझे मेरी हद बताती है ।
मेरी ये तस्वीरें मुझे आत्मप्रेम सिखाती हैं ।