पीले पत्ते..

मैं पीले पत्तों को गिरते देख रही थी।

गिरते पीले पतों ने भी मुझे देखा,

और मुझसे कहा-

क्या तुम जानती हो कि हम क्यों गिर रहें हैं?

मैं अपने अलहड़ से अंदाज में बोली-

बिल्कुल जानती हूँ।

तुम्हारे जाने का समय मुकर्रर था।

सावन में तुम आये, पतझड में तुमको झड़ जाना था।

अबतक पत्तें धरती को छू चुके थें।

उनमें से एक ने धीरे से कहा- वक्त है हमारा जो पेड़ से बिछड़ जाने का हो तो हम गिर जातें हैं।

पर तुम बताओ तुम जीते जी क्यों मर जाते हो?

35 thoughts on “पीले पत्ते..

  1. शानदार और विचारोत्तेजक प्रस्तुत चित्रकला, ऐसी अद्भुत कविता में । बधाई और… उच्च ! 🙂
    जन्मदिन की शुभकामनाएँ!

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    1. पसंद करने के लिए आपका तहे दिल से आभार 🤗🤗 और आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💝💝🎉🎉🤗🤗

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