
हाँ मैं लड़की हूँ!
शायद इसलिए मेरे चरित्र की पड़तालें कुछ ज्यादा होतीं हैं।
मेरे कपड़ों पर सवालें भी ज्यादा होतीं हैं।
मुझे डर नहीं लगता जंगल के जानवरों से,
मेरी मुलाकातें आये दिन
शहरों, गलियों, दफ्तरों में दरिंदों से
ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!
तन तो सबको दिया है ईश्वर ने।
पर मेरे तन के लिए सबको अवांछित उत्तेजनाएं कुछ ज्यादा होतीं हैं।
मैं तो करतीं हूँ अपना काम मगर..
समाने वाले की नज़रें जब कहती हैं कुछ और,
तो सोचती हूँ कि क्यों
पुरुषों की चौड़ी छाती उनकी शक्तियां
और मेरे उभरे स्तन के लिए चिंतित अभिव्यक्तियां ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!
और ऐसी कोई जगह नहीं
जहाँ मुझे सहेजना ना पड़ता हो खुद को।
मिडिया के अश्लील कमेंट्स, मेसेजस और ट्रोलिंग में भी
मुझपर, मेरे जिस्म पर,
इस पर इस्तमाल किये गये कपडों पर,
मेरी चाल, हरकतों पर
अभद्र चर्चाएं ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!
सामान्य जिंदगी जीने की चाह में,
कुछ सपनों की राह में,
मैं घर से निकलूं भी तो..
मेरा दिमाग अपनी क्षमताओं के लिए कम
और मेरे शरीर के कुछ अंग
प्रलोभन की पात्राएं ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!
पर मैं और जिस्म मेरा कोई रहस्य नहीं।
फिर क्यों इसे सुलझाने की अनचाही कवायतें ज्यादा होतीं हैं?
आदमी भले मेरी असमत नोचने के लिए हैवान बना बैठा हो,
यहाँ मेरे हीं आदर्श बने रहने की रवायतें ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!
अब मैं खुद से करूँ नफ़रत?
या करूँ इस असुरक्षा पर संवाद?
मैं भले वक्त-बेवक्त बेआबरू कर दी जाऊँ।
पर मर्दों की इस दुनिया में,
उन्हें नग्न ना करने की हिदायतें ज्यादा होतीं हैं।
हाँ मैं लड़की हूँ!